Aaine mein khud ka chehra chhupatey ho n- आईने में खुद का चेहरा छुपाते हो न -Kavi Ambika Rahee -कवि अम्बिका राही



दोस्तों यह कविता एक रियल घटना से प्रेरित होकर लिखी गई है और मुझे उम्मीद है यह घटना हर एक के जीवन में एक बार जरूर घटित हुई होगी ऐसी घटनाएं जिसके कल्पना मात्र से ही इंसान डर जाता है होश खो बैठता है अपना आत्मसंतुलन खो बैठता है ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि हम उस इंसान को संपूर्ण समर्पण के साथ प्यार करते हैं चाहते हैं दोस्तों संपूर्ण समर्पण कहने से मेरा तात्पर्य खुद को उसके अधीन होने से है ऐसा रिश्ता जिसमें कोई स्वार्थ ना हो कोई छलावा ना हो ऐसी रिश्तो से आप दूर तो हो सकते हैं लेकिन मेरा दावा है इन रिश्तो को भूलने के लिए एक जिंदगी छोटी है

मैं अंबिका राही निम्नलिखित पंक्तियों में उस शख्स से यह पूछने का प्रयास किया है कि क्या उसे भी मेरी याद आई है
Aaine main khud ka chehra chhupati ho n,
Tujhe yaad to meri aaj bhi aati hai n,

barso beet gaye hamare kisse ko,
phir bhi aata dekh najarin jhukati ho n,


jahan milte they ham dono kabhi,
wahan baith kar ab bhi wakt bitatey ho n,


dhalta hoga jab bhi suraj tere chhat par,
mahsoos tere dil ko meri ahat hoti hai n,

karta tha  intejaar jis raah par kabhi,
us raah par rahee ko miss kartey ho n,

d-umra bhoolna muskil hai kahta raha tumse,
password tere name ka ab bhi rahta hai n,

sach sach batana tumko main bhi,
har ghadi yaad aaya hun n!

www.kaviambikarahee.com




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