समर्पण का प्यार तू पायेगा कहाँ - अम्बिका राही

समर्पण का प्यार तू पायेगा कहाँ - Kavi Ambika Rahee | कवि अम्बिका "राही"

 समर्पण का प्यार तू पायेगा कहाँ




 समर्पण का प्यार तू पायेगा कहाँ,

उम्मीद मत कर कलयुग है यहाँ !


प्रेम की परिभाषा ही थोड़ी, बदल गयी है,
या बदली नहीं, मन में हमने सोच ली है,

ऐसा नहीं हर शख्स, मन में खोट ली है,
यकीं कैसे हो, जब धोखे में चोट ली है,

बिन विश्वास खुद को, स्वतन्त्र कर पायेगा कहाँ,
उम्मीद मत कर कलयुग है यहाँ !


समर्पण का प्यार तू पायेगा कहाँ,
उम्मीद मत कर कलयुग है यहाँ !

- अम्बिका राही

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